बतकही

मोको काहूँ ना मिला जासूं कहूं निसंक

Friday, October 18, 2013


at October 18, 2013
Email ThisBlogThis!Share to XShare to FacebookShare to Pinterest

No comments:

Post a Comment

Older Post Home
Subscribe to: Post Comments (Atom)

  • (no title)
    “आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का अनुवाद चिन्तन”      आ चार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य का ही नहीं ,वरन भारतीय साहित्य की आधार भूमिक...
  • गली में घर का निशां ढूंढ्ता रहा बरसों......
    मैं कायनात में,सय्यारों में भट्कता था धुएं में धूल में उलझी हुई किरन की तरह मैं इस जमीं पे भट्कता रहा हूं सदियों तक गिरा है वक्त से कट्कर जो...

Search This Blog

Pages

  • Home

Blog Archive

  • ▼  2013 (3)
    • ▼  October (3)
      •               सिनेमा और स्त्री...कितने दूर...
      •                                           ...
  • ►  2011 (1)
    • ►  December (1)
  • ►  2009 (2)
    • ►  August (1)
    • ►  April (1)
  • ►  2008 (2)
    • ►  September (2)

Report Abuse

. . .जब से किसीने

कर ली है सूरज की चोरी

आओ

चल के सूरज ढूंढें

और न मिले तो

किरन किरन फिर जमा करें हम

और इक सूरज नया बनायें



Total Pageviews

Followers

Subscribe To

Posts
Atom
Posts
Comments
Atom
Comments
Travel theme. Powered by Blogger.