बतकही
मोको काहूँ ना मिला जासूं कहूं निसंक
Friday, October 18, 2013
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(no title)
“आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का अनुवाद चिन्तन” आ चार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य का ही नहीं ,वरन भारतीय साहित्य की आधार भूमिक...
गली में घर का निशां ढूंढ्ता रहा बरसों......
मैं कायनात में,सय्यारों में भट्कता था धुएं में धूल में उलझी हुई किरन की तरह मैं इस जमीं पे भट्कता रहा हूं सदियों तक गिरा है वक्त से कट्कर जो...
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